लोग गायिका शारदा सिन्हा का गायन एक ऐसी सांस्कृतिक संपदा है जो उत्तर भारत की एक बड़े हिस्से की संस्कृतिक आत्मा की अभिव्यक्ति है। उन्होंने अपने गायन के माध्यम से लोक संगीत की धरोहर को संरक्षित ही नहीं किया बल्कि उसे देश-विदेश में स्थापित किया। उनके गायन विशिष्ट रूप से लोक संस्कृति का प्रतिबिंब था ।उनके गीतों में जनजीवन की उन भावनाओं को देखा जा सकता है जो समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है। उनके गीतों में त्योहार ,प्रेम ,विरह
सुख-दुख जीवन के विविध रंग और ग्रामीण समाज की धड़कन महसूस की जा सकती है ।उनके लोक गीत केवल संगीत के स्तर पर सीमित नहीं रहते बल्कि समाज की सामूहिक संस्कृति के वाहक बनते हैं। उनका स्वर लोकगीतों के स्वरूप को संपूर्णता प्रदान करता था। जिसमें सिर्फ गायन नहीं बल्कि उसे संगीत के माध्यम से जीवन की कला और दर्शन भी उभर कर आता था।
छठ पर्व पर शारदा सिन्हा के गीत एक अलग ही महत्व रखती थी। उनके गीतों में छठ पर्व की आध्यात्मिकता परिवार और समाज के प्रति समर्पण और आस्था की गहराई को महसूस किया जा सकता था। ‘पहिले पहल छठी मैया ‘और ‘केलवा के पात पर’जैसे गीतों में वह भक्ति भाव झलकता है जो लोगों के दिलों को छूता है। उनके गीतों से श्रोताओं को एक तरह की सांस्कृतिक एकता का अनुभव होता है। उनके गीत लोक जीवन के अनरगिनित बिंदुओं को जीवंत करते हैं जिनसे छठ जैसे पर्व एक धार्मिक अनुष्ठान न रहकर सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन जाते हैं ।उनका लोग गायन अन्य लोक गायको से इस मायने में भिन्न था कि वह अपने गायन में पारंपरिक गायनो के साथ-साथ आधुनिक संगीत तत्वों को भी शामिल करती थी।
उन्होंने अपनी रचनात्मकता का उपयोग कर लोक संगीत को न केवल संजोया बल्कि उसे एक नया आयाम भी दिया। जो युवा पीढ़ी को लोक संगीत के प्रति जागरूक और आकर्षित करता है ।उनके गीतों में आधुनिकता और परंपरा का समन्वय लोक संगीत को अद्वितीय स्वरूप प्रदान करता था।
शारदा सिन्हा की गायन शैली में उनकी भाषा की सरलता और लोक शब्दों का सहज प्रयोग मिलता है। उनके गीतों में मैथिली ,भोजपुरी भाषा का प्रयोग इतनी खूबसूरती से होता था कि भाषा के प्रति प्रेम स्वयं ही जागृत हो जाता था। वह शब्दों को इतने मार्मिक और सजीव रूप में प्रस्तुत करती थी कि श्रोता उस संगीत में डूब कर खुद को उन भावनाओं के बीच महसूस करने लगते थे ।उनके गायन में भाषा ,समाज और संस्कृत के बीच का ऐसा जीवन्त पुल बनता था जो लोगों के दिलों को जोड़ता था ।उन्होंने अपने गायन में केवल प्रेम या भक्ति के गीत ही नहीं गाए बल्कि सामाजिक समस्याओं पर भी अपने गायन के माध्यम से विचार प्रस्तुत किया। उनके गीतों में एक सांस्कृतिक जागरूकता की झलक मिलती थी। इन गीतों के माध्यम से वह समझ , एक नई सोच और परिवर्तन की आवश्यकता को भी उजागर करती थी।
बिहार कोकिला कहीं जाने वाली शारदा सिन्हा का गायन लोक संगीत को उन्होंने जिस सजीवता और नवीनता की साथ प्रस्तुत किया, उससे वह भारतीय संगीत के मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। जो एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अमूल्य है। उन्होंने अपनी गायन से बिहार ,उत्तर प्रदेश के साथ-साथ संपूर्ण भारतीय लोक संस्कृति को एक विशेष पहचान दी। उनका संगीत समय के साथ और अधिक अमर होता जाएगा और भावी पीढ़ियों को अपनी सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ने के लिए प्रेरित करेगा। शारदा सिन्हा का गायन भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के लिए एक अविस्मरणीय योगदान है।